Pratik Agarwal – EE_RPPF

First Reflection:

मेरा परिवार न्यायिक पृष्ठभूमि से संबंधित है, जिस वजह से मुझे कई प्रकार के कानूनों का ज्ञात है। सभी कानूनों में शरिया कानून ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खींचा, जिस तरह इसके तीव्र कानून महिलाओं के मानवाधिकारों  को भंग करते हैं वैसा अनैतिक कार्य ना ही मैंने कभी देखा और ना ही कभी सुना था। मुस्लिम समुदाय में महिलाओं की वास्तविक स्थिति को जानने के बाद, मुझे इस पर एक संक्षिप्त शोध करने की आवश्यकता महसूस हुई क्योंकि मेरा मानना है कि पुरुष और महिला दोनों समान हैं और दोनों के पास समान अधिकार होना चाहिए। तो एक संक्षिप्त शोध करने के लिए मैंने अपने विस्तारित निबंध के रूप में इस पर काम करने का फैसला किया। महिलाओं पे ट्रिपल तलाक सबसे ज्यादा  प्रभावी होता है क्योंकि उसके पश्चात वे बेघर और समर्थनहीन हो जाते हैं और इस कारण से मैंने महिलाओं पर शरिया कानून के प्रभावों पर शोध करना तय किया।

Second Reflection:

कुछ सुधारो के पश्चात, मेरी शोध समग्र रूप से सफल रही। मेरे हिंदू मित्र के साक्षात्कार के दौरान मुझे एहसास हुआ कि आम तौर पर, लोगों के पास मुस्लिम कानून (शरिया) पर पक्षपातपूर्ण राय है और इसलिए एक समग्र और अधिक विश्वसनीय विचार पैन के लिए मैंने अपनी एक मुस्लिम अध्यापिका का साक्षात्कार लेने का फैसला किया। उन से मिली जानकारी ने मैंनो मेरा नज़रिया ही बदल दिया, लड़ाई मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ नहीं है, यह निश्चित रूप से शरिया कानून के खिलाफ है जिसने पुरुषों को महिलाओं पे हावी कर दिया। जब तक आधुनिक पीढ़ी के तहत कानून संशोधित नहीं किया जाएगा, तब तक लोग ऐसे अपराध करते रहेंगे और पीढ़ियों तक इसे पारित करेंगे। इससे पहले मैं मुस्लिम समुदाय और मुस्लिम धर्म के लिए एक नकारात्मक छवि रखता था लेकिन इस विस्तारित निबंध को लिखते हुए मुझे एहसास हुआ कि एक व्यक्ति जो कुछ देखता है और सीखता है, वह उसी का पालन करता है। यह सुनकर मेरी मुस्लिम धर्म पे राय बदल गई। इसके अलावा, निबंध लिखते समय, ट्रिपल तलाक़ कानून विकास में था और उसमें किये संशोधनों ने मेरी शोध पर प्रभाव डाला और इसलिए मुझे इस विस्तृत निबंध में अक्सर अद्यतन करने पड़ते थे जो खुद में ही एक चुनौती थी।

Third Reflection:

अगर मैं इस शोध को दोबारा कर पाता, तो मैं इसमें कुछ बदलाव करता। मुख्य रूप से, मैं अपनी अनुसंधान पहले से ही शुरू कर देता और जितना समय हो सके उतना समय देता क्योंकि भाषा (हिंदी) ऐसा विषय है जिसमें पूर्णता कभी प्राप्त नहीं हो सकती। मैं एक मुस्लिम आदमी का साक्षात्कार करना चाहता था लेकिन खोजने के बाद भी (आसपास एवं इंटरनेट पर) मुझे कोई विश्वसनीय वक्ता नहीं मिला, शायद जल्द शुरुवात करने पे मुझे इस बात का समाधान मिल जाता और मेरी शोध और भी स्पस्ट होती। शोध के दौरान अये प्रष्नों के उत्तर ढूढ़ने की मैंने पूरी कोशिस की क्योंकि मुझे स्वयं इस विषय में रूचि उत्तपन हो गई थी, इसलिए मेरी सुध काफी हद तक विस्तृत है। कुल मिलाकर, मुझे इस शोध का संचालन करने में बहुत आनंद मिला और मैं ख़ुशी-ख़ुशी इसे दोबारा लिख सकते हु।

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