First Reflection: Descriptive and Analytical
हिंदी मेरी मातृभाषा हैं और इसीलिए मैंने अपना एक्सटेंडेड एस्से हिंदी में करने का निर्णय लिया। हिंदी में एस्से करने के निर्णय के बाद मैंने शोध के लिए विषय ढूँढना शुरू किया । उसी दौरान मैंने एक अनुच्छेद धारावाहिकों के बारे में पढ़ा जो मुझे रोमांचक लगा और में उसके बारे में आगे शोध करने के लिए जिज्ञासिक हो गई । आगे शोध में मैंने धारावाहिक से सम्भंदित जानकारी प्राप्त करी जो ज्यादातर नकारात्मक थी जिससे मुझे वितर्क ढूंढने में समय लगा पर वह मिल गया और फिर मैंने अपने एक्सटेंडेड एस्से का शोध प्रश्न बनाया। इसके बाद जब मैंने अपने शोध प्रश्न पर पूरी शोध ख़तम कर दी तब मुझे लगा की यह शोध सही नहीं हैं तो मैंने धारावाहिक के विषय पर नए शोध प्रश्न के लिए शोध करने का निर्णय लिया। नई शोध लिखना काफी कठिन था पर मैंने वह कार्य समय से कर लिया था।
Second Reflection: Analytical
जो मेरी शोध थी उसमे भीतर जानकारी प्राप्त करने के लिए मैंने कुछ साक्षात्कार लिए, इनकी मदद से मुझे काफ़ी अलग विचारों की जानकारी मिली, जिससे मैं अपने शोध के तर्क-वितर्क को आगे बढ़ा सकी। पहले मैंने सिर्फ़ अनुच्छेद पढ़ कर शोध करने का सोचा था पर मुझे लगा के और भीतर शोध करने के लिए मुझे धारावाहिक खुद देखने चाहिए, उनके प्रदर्शन जानने के लिए, और वह देखने के बाद मैंने काफी और जानकारी प्राप्त करी। मेरे शोध करने के तरीके में बदलाव लाने से मुझे काफी ऐसी जानकारी भी प्राप्त हुई थी जो शायद मुझे इंटरनेट पर कही नहीं मिलती। यह शोध करने के बाद मुझे भारतीय संस्कृति और धारावाहिक के विषय में बहुत सारी नयी जानकारी मिली हैं। मेरी जो शोध करने का कौशल हैं वह भी बढ़ गया हैं क्योंकि मैंने अब सारे सूत्रों को अलग – अलग पक्ष से देखना शुरू कर दिया हैं।
Third Reflection: Evaluative
अगर मुझे यह शोध करने का मौका फिर से मिलता तो मैं अपने शोध करने के तरीके को नहीं बदलती क्योंकि मैंने अभी भी प्राथमिक स्रोत का ही ज्यादातर इस्तेमाल किया हैं क्योंकि वे हमे कोई भी जानकारी भीतर में जानने में मदद करते हैं और अगर में यह शोध वापिस करती तब भी में इन्ही स्रोत का इस्तेमाल करती। इसके सबसे बड़ा कारण हैं इन स्रोत से मुझे वास्तविक जानकारी मिली जो शायद मुझे द्वितीय स्रोत से नहीं मिलती। इसके साथ ही में अपने लक्षित दर्शक को बढाती जिससे मुझे ज्यादा लोगो के विचारों बारे में जानकारी मिलती। अगर में अपनी शोध वापिस करती तो जो इनमें सिद्धांतों का पालन हुआ हैं वह थोड़ा बदल जाता जैसे में अपनी शोध के नमूने के आकर को बड़ा देती जिससे मैं इस विषय पर ज्यादा लोगों के विचार्रो को जान और समझ सकती। मेरे हिसाब मेरे चुने हुए तरीकों से मैंने अपने परिणामों को सफलता से प्राप्त कर लिया था। अगर मेरे परिणाम में बदलाव आता तो फिर जब मैं अपनी शोध फिर से करती तो मेरे नमूने के आकर को तो बढ़ाती, साथ ही में अपनी शोध में सिर्फ गृहिणी के बजाय विभिन्न क्षेत्र के लोगो से साक्षात्कार लेती।