First Reflection :-
पहले मैंने अर्थशास्त्र में करने का सोचा लेकिन कोई शोध शीर्षक नहीं मिला। फिर मै हिंदी में शीर्षक और शोध प्रश्न ढूंढ़ने लगा। पहले मैंने भारत के अंध विश्वास के कई चेहरों के बारे में शोध करने का निर्णय लिया लेकिन बादमे मुझे शीर्षक बदलना पड़ा क्योंकि वह काफी विस्तृत था और इस ही वजह से मुझे उसे सीमित करना पड़ा। अभी तक मैं उसे सीमित किस दिशा में करूँ वो तय नहीं कर पाया हूँ। अभी तक मैंने जो भी जानकारी चाहिए थी वह ढूंढ़ने के लिए सिर्फ द्वितीय शोध पर निर्भर रहा हूँ। लेकिन जैसे ही मुझे एक शोध प्रश्न मिल जाएगा, फिर मै प्राथमिक अनुसंधान भी करूँगा। अभी तक मुझे सिर्फ शीर्षक और शोध प्रश्न ढूंढ़ने में मुश्किल आई है।
Second Reflection :-
जो मैंने इस EE के लिए जो शीर्षक सोचा था, उसे सीमित करना था। मैंने पहले उसके लिए सोचा कि रोज़ मर्रा में जो अंध विश्वास होते हैं, उस पर शोध करूँ, लेकिन फिर समझ में आया कि उससे पूरा यह शोध पत्र पूरा नहीं होगा। तो फिर मैंने हिन्दू धर्म के १६ संस्कारों को लेने का निर्णय लिया। फिर उस पर जानकारी ढूंढ़ने के बाद पता चला कि अगर सारे संस्कारों पर किया तो फिर ४००० शब्द यूँ ही ख़त्म हो जाएंगे और कुछ भी फल नहीं निकलेगा इस शोध पत्र का। तो फिर मैंने अपने अध्यापिका की मदद के साथ यह निर्णय लिया कि इनमे से जो ५ संस्कार जन्म से सम्बोधित हैं, उन पर शोध करके पता करे कि आज के लोगो की ज़िंदगी में, यह कितने प्रचलित हैं ?
Final Reflection :-
अगर मैं यह शोध वापिस से करता हूँ तो मैं इसमें और भी ज्यादा खोज करूँगा। और ऐसा करने के लिए मैं शायद से कुछ साधु संत और पंडितो से पूछ ताछ करूँगा। मेरे परिवार के अलावा भी कुछ अलग अलग तरह के परिवार में पूछ ताछ करूँगा ताकि ज्यादा जानकारी मिल सके और हम उस पर ज्यादा चिंतन कर सके। यह शोध पत्र के लिखने से कुछ बदलाव से आ गए हैं मेरे और मेरे परिवार में। अब कोई भी धार्मिक क्रियाए करने से पहले मैं अपने माता पिता से पूछता हूँ कि हम ऐसा क्यों करते हैं और इसका महत्व क्या हैं? और अब से मेरे माता पिता भी कुछ कुछ रिवाज़ जिनके बारे में उन्हें जानकारी नहीं हैं, उनसे अपना विशवास उठा चुके हैं। कुछ चौकाने वाली जानकारी मिली कि आज के समाज में हमारे हिन्दू धर्म की मान्यता काफी कम हो गई। यह सब का सबूत इस एक्सटेंडेड एस्से में था। मेरा जो अंदाजा था कि आने वाली पीढ़िया, मेरी मिलाके, हमारे यह संस्कारों में बहुत कम विश्वास करते हुए कोई भी रीती रिवाज़ या धार्मिक क्रिया नहीं करेंगी।